Monday, January 20, 2025
BIG BREAKING - बड़ी खबरचतराझारखंड

चतरा लोकसभा: भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर, फैसला जनता के हाथ

चतरा : चतरा लोकसभा चुनाव मैदान में एक बार फिर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर होने जा रही है। यहां से भारतीय जनता पार्टी ने कालीचरण सिंह के रूप में नये चेहरे को मौका दिया है, जबकि कांग्रेस ने पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी पर दांव आजमाया है। 1999 में चतरा से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सांसद बने नागमणि इस बार बीएसपी के टिकट पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। अब फैसला चतरा की जनता के हाथ में है।

Chatra Lok Sabha News

झारखंड की सबसे छोटी चतरा लोकसभा सीट में 5 विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें से सिमरिया और पांकी पर भाजपा, चतरा पर राजद, मनिका पर कांग्रेस और लातेहार पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का कब्जा है। यानी 5 विधानसभा सीटों में से 2 पर भाजपा और 3 सीटों पर महागठबंधन के विधायक हैं।

चतरा लोकसभा सीट से भाजपा ने सबसे ज्यादा 4 बार, कांग्रेस ने 3 बार और राजद ने 2 बार जीत हासिल की है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुनील सिंह को 5,28,077 यानी 57 फीसदी वोट मिले थे। उनके निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के मनोज यादव को 1,50,206 यानी 16.2 फीसदी वोट ही मिल सके। इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट प्रतिशत का अंतर तीन गुना से भी ज्यादा था। उस वक्त राजद प्रत्याशी सुभाष यादव भी दोस्ताना लड़ाई के लिए मैदान में कूद पड़े थे। लेकिन उन्हें सिर्फ 9 फीसदी वोट मिले थे। 2019 के चुनाव में चतरा लोकसभा सीट से 26 उम्मीदवार मैदान में थे। इनमें से 18 उम्मीदवारों को नोटा से भी कम वोट मिले।

Chatra Lok Sabha News

इस बार लोकसभा चुनाव में 22 उम्मीदवार मैदान में हैं। चतरा में भाजपा को 2014 में 41 फीसदी और 2019 में 57 फीसदी वोट मिले। जो चतरा लोकसभा के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी जीत के तौर पर दर्ज है। चतरा में 28 फीसदी अनुसूचित जाति, 19 फीसदी आदिवासी और 13 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। इसके अलावा यहां कुशवाह और यादव जाति के मतदाता भी बड़ी संख्या में हैं। कांग्रेस को 19 फीसदी आदिवासी, 13 फीसदी मुस्लिम के साथ-साथ यादव और कुशवाह वोटों के जरिये जीत की उम्मीद है।

भारतीय जनता पार्टी ने 2014 और 2019 में लगातार दो बार चतरा से पार्टी सांसद रहे सुनील कुमार सिंह का टिकट काट दिया और कालीचरण सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया। सुनील सिंह के रवैये से भाजपा कार्यकर्ता काफी नाराज थे। कई चुनावी सभाओं में उनके खिलाफ खुलेआम नारे लगाये गये। भाजपा कार्यकर्ताओं के विरोध और पार्टी के सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर सुनील सिंह को बाहर कर दिया गया। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के करीबी और प्रदेश उपाध्यक्ष कालीचरण सिंह को उम्मीदवार बनाया गया। उनके पास पार्टी और संगठन में काम करने का लंबा अनुभव है।

चतरा के मूल निवासी कालीचरण सिंह को टिकट मिलने के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर हो गयी। लेकिन चतरा से सुनील सिंह और धनबाद से पीएन सिंह जैसे दो राजपूत नेताओं के टिकट कटने से राजपूत समुदाय नाराज हो गया। क्योंकि इन दोनों सीटों पर उम्मीदवार बदलने से झारखंड की 14 सीटों पर भाजपा की ओर से राजपूत समुदाय का प्रतिनिधित्व शून्य हो गया। इससे नाराज राजपूत समुदाय ने भाजपा का विरोध करने की धमकी दी। भाजपा ने तुरंत डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की। लेकिन नाराजगी दूर नहीं हुई। पांकी से भाजपा विधायक कुशवाहा शशिभूषण मेहता भी चतरा से टिकट की रेस में थे। लेकिन कालीचरण सिंह को टिकट मिलने से उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। ऐसे में भाजपा में अंदरूनी कलह का खतरा भी बढ़ गया है। राजपूत समुदाय और बीजेपी के एक वर्ग की नाराजगी के बीच मौजूदा उम्मीदवार कालीचरण सिंह के सामने 2019 के प्रदर्शन के साथ-साथ 57 फीसदी वोट शेयर के पिछले प्रदर्शन को दोहराने की दोहरी चुनौती है।

झारखंड में तीन मई से 14 मई के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छह बार चुनावी सभायें और रोड शो कर चुके हैं। उन्होंने सबसे पहले 3 मई को चाईबासा में विजय संकल्प रैली के जरिये सिंहभूम और खूंटी के पार्टी उम्मीदवारों के लिए वोट मांगा था। उसी दिन उन्होंने झारखंड की राजधानी रांची में रोड शो भी किया था। अगले दिन 4 मई को प्रधानमंत्री ने पलामू और गुमला की सभाओं के जरिये पलामू और लोहरदगा के प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया। 11 मई को पीएम मोदी ने चतरा में वोट मांगे। वहीं 14 मई को कोडरमा में चुनावी सभा हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रैली के दौरान जिस तरह से भ्रष्टाचार पर हमला बोला था। इससे कार्यकर्ताओं में नया उत्साह आया और पार्टी के चुनाव अभियान को गति मिली। पार्टी का हर नेता और कार्यकर्ता सक्रिय हो गया। पीएम मोदी को करीब से देखने और सुनने के बाद कोल्हान और छोटानागपुर के लोगों का नजरिया भी बदल गया। प्रधानमंत्री के औचक दौरे से भाजपा की राह आसान दिखने लगी। ऐसे में इंडी गठबंधन के सामने नयी चुनौतियां खड़ी हो गयीं। प्रधानमंत्री की रैली के बाद मोदी बनाम एंटी मोदी का माहौल भी बनने लगा है।

चतरा सीट को लेकर इंडी अलायंस के घटक दलों के बीच लंबे समय से खींचतान चल रही थी। राजद बार-बार चतरा पर दावा ठोकता रहा। लेकिन राजद के आग्रह के बावजूद कांग्रेस ने पूर्व मंत्री केएन को उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर दी। लेकिन जब कांग्रेस का एक गुट त्रिपाठी को बाहरी बताकर नाराज हो गया तो राजद कार्यकर्ताओं का गुस्सा भी उबल पड़ा।

टिकट बंटवारे के छह दिन बाद 22 अप्रैल को रांची में आयोजित इंडी अलायंस की उलगुलान महारैली में इस मुद्दे पर कांग्रेस और राजद कार्यकर्ताओं के बीच जबरदस्त झड़प हुई। गोड्डा की तरह चतरा से भी कांग्रेस उम्मीदवार बदलने की मांग बढ़ने लगी। लेकिन कांग्रेस ने फैसला नहीं बदला। इसके बाद सभी सहयोगी दलों ने केएन त्रिपाठी के चुनाव प्रचार में हिस्सा लिया। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी चुनावी रैली की। लेकिन केएन त्रिपाठी पर भितरघात का खतरा अभी भी टला नहीं है।

चतरा लोकसभा