मनरेगा योजनाओं में जारी है भ्रष्टाचार का खेल, राजनीतिक हस्तक्षेप देता है बढ़ावा
MNREGA Corruption latehar
गोपी कुमार सिंह/लातेहार
लातेहार : जिले के गारू प्रखंड में इनदिनों मनरेगा योजना में बड़े पैमाने पर घोटाला किया जा रहा है. लेकिन पूरे मामले को लेकर प्रखंड प्रशासन तमाशबीन बना हुआ है. नतीजन घोटालेबाज मनरेगा योजना में जमकर लूट मचाए हुए है.
कूप निर्माण में घटिया सामग्री इस्तेमाल
ताजा मामला गारू प्रखंड के रुद पंचायत के हेंदेहास गांव का है. जहाँ हेंदेहास निवासी कूप योजना के लाभुक रविंद्र उरांव ने कूप निर्माण कार्य मे घटिया सामग्री इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. लाभुक के मुताबिक कूप का निर्माण कार्य कोटाम पंचायत के बैगाटोली निवासी निजामुद्दीन अंसारी के द्वारा कराया गया है.

नहीं लगाया गया योजनापट्ट
आरोप है कि घटिया सामग्री के कारण कुआ का ऊपरी स्तर एक साल से पहले ही भरभरा कर टूट चूका है. जबकि योजनास्थल पर योजनापट्ट भी नही लगाया गया है. बहरहाल कुआ का ऊपरी सतह भर भराकर गिर चूका है. अब ऐसे में कुआ ग्रामीणों के किसी काम लायक नही बचा है.
दिलचस्प बात तो यह है कि मनरेगा के तहत संचालित कमोबेश सभी कार्यो में घोटाला किया जाता है. लेकिन प्रखंड से लेकर ज़िले के कई अधिकारियों से मिलीभगत के कारण ऐसे योजनाओं की जाँच तक नही हो पाती है.

मनरेगा योजनाओं में भ्रष्टाचार का बोलबाला
अगर गारू प्रखंड क्षेत्र के सिर्फ़ रुद और कोटाम पंचायत में मनरेगा योजनाओं की जांच होती है. तो करोड़ों रुपये का घोटाला सामने आएगा। आप इससे अंदाजा लगा सकते है कि पूरे प्रखंड में किस हदतक मनरेगा योजनाओं में भ्रष्टाचार का बोलबाला है.
लिखित शिकायत के बावजूद नहीं होती कार्रवाई
इधर, प्रखंड के सिमाखास वार्ड पार्षद शुशाना देवी के पति शांतु लकड़ा का भी मानना है कि पंचायत में बड़े स्तर पर घोटालेबाजी का खेल जारी है. लेकिन कई बार लिखित शिकायत करने के बावजूद कोई कारवाई नही होती है.
बिना रिश्वत के नहीं होता है काम
आरोप है कि रुद पंचायत में अधिकांश कुआं योजना पर योजनापट्ट ही नही है. ख़बर यह भी है कि मनरेगा योजना संबंधित विभाग के पदाधिकारियों व स्टाफ के लिए लूट-खसोट और घूस के माध्यम से अपनी जेब भरने का एक साधन बनकर रह गया है. जिले के सभी प्रखंडों में मुद्रा मोचन आम बात हो चूकि है. मनरेगा के सभी स्कीम पर बिना घूस लिए हुए काम नहीं होता है.
उपायुक्त की सोच पर ग्रहण लगाने की कोशिश
बहरहाल जिस तरह लातेहार उपायुक्त अबु इमरान लातेहार जिले को कई बड़ी योजनाओ की सौगात, पर्यटन और शिक्षा के क्षेत्र में देकर बेहतर कार्य कर जिले को एक नई पहचान देने की जद्दोजहद में लगे हुए है. लेकिन जिस तरह आये दिन मनरेगा कार्य मे घोटालेबाजी की ख़बर सामने आती रहती है. उससे तो फ़िलहाल यही कहा जा सकता है कि मनरेगा के बिचौलिए उपायुक्त की इस सोच पर ग्रहण लगाने की कोशिश कर रहे है.
भ्रष्टाचार को लेकर उपायुक्त ने की थी बड़ी कारवाई
लातेहार के गारू में मनरेगा में भ्रष्टाचार नयी बात नहीं है. हालांकि पूर्व में लातेहार उपायुक्त ने मनरेगा भ्रष्टाचार मामले को लेकर एक बड़ी कारवाई की थी. डीसी ने मनरेगा नियम के विरूद्ध कार्य करने वाले गारू प्रखंड के सभी 8 मुखिया, पंचायत सेवक, रोजगार सेवक, 2 कंप्यूटर आपरेटर, सभी योजनाओं के मेठ एवं 4 वेंडरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाते हुए कड़ी कारवाई की थी.
गारू प्रखंड में मनरेगा के तहत वर्ष 2017-18 से 2020-2021 तक वेंडर, मुखिया, पंचायत सेवक, रोजगार सेवक, कंप्यूटर ऑपरेटर एवं मेठ की मिलीभगत से प्रावधानों की अनदेखी कर मनरेगा के तहत संचालित योजनाओं में कार्य कर रहे राज मिस्त्री एवं मजदूरों के भुगतान की राशि वेंडरों के खाते में डाला गया था. इसकी शिकायत मिलने पर उपायुक्त ने ये कारवाई की थी.
योजनाओं में बिचौलियों की भूमिका अहम्
लेकिन एकबार फिर से गारू प्रखंड में मनरेगा योजना के तहत संचालित योजनाओं में बिचौलियों की भूमिका बढ़ गयी है. हालाँकि मनरेगा कानून में ठेकेदारी पर पाबन्दी है, लेकिन मनरेगा की शुरूआती दिनों से ही योजनाओं के चयन से कार्यान्वयन तक में ठेकेदार (बिचौलिए) जुड़े हैं. ठेकेदारों की मनरेगा कर्मियों व प्रशासन के साथ साठ-गांठ होने के कारण मज़दूर व योजना के लाभुक इन पर ही निर्भर रहते हैं.
राजनीतिक संरक्षण देता है भ्रष्टाचार को बढ़ावा
अनेक पंचायत प्रतिनिधि खुद ठेकेदारी करते हैं या उनमें से अधिकांश इस साठ-गाँठ का हिस्सा हैं. इस तंत्र को मिलने वाला राजनैतिक संरक्षण भी किसी से छुपा नहीं है. यह भी आम बात है कि जब जो राजनैतिक दल सत्ता में रहता है तब उनके कैडर की मनरेगा ठेकेदारी में भूमिका बढ़ जाती है.
मनरेगा को भ्रष्टाचारियों के चंगुल से निकालना जरुरी
झारखंड के लिए मनरेगा का महत्त्व किसी से छुपा नहीं है. चाहे गाँव में ही रोज़गार उपलब्ध करवा के पलायन रोकना हो या कुआँ, तालाब व आम बगान जैसी योजनाओं से आजीविका सुदृढ़ करना या दुर्गम क्षेत्र में कच्ची सड़क बनाना, मनरेगा से ग्रामीण विकास की अपार संभावनाओं के कई जीते-जागते उदहारण हैं. लेकिन पहले मनरेगा को भ्रष्टाचारियों के चंगुल से निकालना होगा।
ग्रामीणों के हक़ में होती है सेंधमारी
ख़ैर, जिस तरह से गारू प्रखंड में लगातार मनरेगा घोटाले का मामला प्रकाश में आ रहा है उससे ये तो साफ़ है कि मनरेगा के तहत मजदूरों को काम देने का दावा पूरी तरह खोखला हो चुका है. चूकि सुखी सम्पन्न लोग गांव के भोले-भाले आदिवासी ग्रामीणों के हक़ पर सेंधमारी कर अपनी तिजोरी भर रहे है. इस बात का उदाहरण 17/4/2021 की तारीख है.
ज्यां द्रेज की टीम ने योजनाओं का लिया था जायजा
दरअसल इस तारीख़ को देश के जाने माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज और उनकी टीम ने लातेहार जिला के मनिका प्रखंड में कई योजनाओं का जायजा लिया था. उस जायजा में कई चौकाने वाले तथ्य सामने आये थे. जहां मजदूरों को काम देने का दावा खोखला नज़र आया था. टीम का मानना था कि राज्य में मनरेगा योजना लूट का केन्द्र बन गया है।
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