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Friday, May 17, 2024
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चतरा लोकसभा: भाजपा के लिए जीत की हैट्रिक लगाना चुनौती, स्थानीय उम्मीदवार की मांग तेज

Chatra Lok Sabha seat

झारखंड के चतरा जिला का इतिहास काफी पुराना है। यहां मौर्य वंश का साम्राज्य हुआ करता था। वर्तमान में यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शामिल है। साल 1991 में इसे जिले का दर्जा मिला। इससे पहले यह क्षेत्र हजारीबाग जिले का उपभाग हुआ करता था। इस जिले में 2 उपभाग 12 ब्लाक, 154 पंचायतें और 1,474 राजस्व गांव हैं।

चतरा लोकसभा सीट के अंतर्गत चतरा, लातेहार जिले का पूरा हिस्सा और पलामू जिले का कुछ हिस्सा आता है। इस सीट के अंदर पांच (पांकी, लातेहार, सिमरिया, मनिका और चतरा) विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें चतरा को छोड़कर बाकी सभी सीटें आरक्षित हैं। मौजूदा दौर में सिमरिया और पांकी सीट पर भाजपा का कब्जा है, तो वहीं चतरा पर राजद, मनिका पर कांग्रेस और लातेहार में झामुमो का विधायक है।

चतरा लोकसभा सीट पर अनुसूचित जाति और जनजाति का दबदबा है। इसके अलावा यहां पिछड़ी जातियां भी हैं। मोटे तौर पर कहा जाए तो इस क्षेत्र में आदिवासी और खोटा समुदाय के लोग ज्यादा हैं। यह पूरा इलाका घने जंगलों से घिरा है, जिनमें बांस, साल, सागौन और जड़ी-बूटियां अत्यधिक मात्रा में पायी जाती हैं। इस इलाके में नक्सलवादी, उग्रवादी संगठन काफी सक्रिय हैं।

भारत में जब 1952 में पहला चुनाव हुआ तो यह सीट अस्तित्व में नहीं थी। 1957 के लोकसभा चुनाव के दौरान यह सीट अस्तित्व में आयी। चतरा लोकसभा सीट झारखंड का ऐसा संसदीय क्षेत्र है, जहां से अब तक कोई भी स्थानीय नेता संसद नहीं पहुंच पाया है। यहां के लोगों ने हमेशा ही बाहरी नेता पर अपना भरोसा जताया है। लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में स्थानीय उम्मीदवारों की मांग लगातार बढ़ रही है। जो राजनीतिक दल स्थानीय उम्मीदवार देगा उसका पलड़ा भारी हो सकता है। कुल मिलाकर इस बार इस लोकसभा सीट पर कांटे की टक्कर होने वाली है। पिछले दो लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो यहां से भाजपा ने रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल की है।

इस सीट पर 1957 में पहली बार आम चुनाव हुआ। 1957 में रामगढ़ की महारानी विजया रानी ने जनता पार्टी की टिकट पर जीत हासिल की। 1962 और 1967 में उन्होंने निर्दलीय जीत हासिल की। 1971 में कांग्रेस का खाता खुला और शंकर दयाल सिंह को जीत मिली। आपातकाल के बाद 1977 में जनता पार्टी से सुखदेव प्रसाद वर्मा जीते। 1980 में फिर से कांग्रेस ने वापसी की और रणजीत सिंह विजयी हुए। 1984 में भी कांग्रेस के उम्मीदवार योगेश्वर प्रसाद योगेश जीते।

चतरा लोकसभा सीट पर 1989 और 1991 में जनता दल के उपेंद्र नाथ वर्मा को जीत मिली थी। 1996 में यहां पहली बार भाजपा की टिकट पर धीरेंद्र अग्रवाल ने जीत दर्ज की। इसके बाद 1999 में भाजपा से ही नागमणि कुशवाहा जीते। 2004 में धीरेंद्र अग्रवाल राजद में शामिल हो गए और जीत दर्ज की। इसके बाद 2009 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में इंदर सिंह नामधारी जीते। 2014 और 2019 में इस सीट पर मोदी लहर का असर दिखा और सुनील कुमार सिंह ने जीत दर्ज की।

अब देखना होगा कि चतरा संसदीय क्षेत्र से भाजपा जीत की हैट्रिक लगाती है या नहीं। हालांकि भाजपा अभी से कवायद में जुट गयी है। मिशन 2024 को लेकर भाजपा ने तानाबाना बुनना शुरू कर दिया है क्योंकि वह 2014 और 2019 की जीत को आगे भी बरकरार रखना चाहती है। चतरा संसदीय क्षेत्र हमेशा से भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की सीट रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मैजिक यहां सिर चढ़कर बोला है। 2014 में भाजपा यहां से 1.78 लाख वोट से जीती थी। संसदीय इतिहास में इतने अधिक वोट से जीत का यह कीर्तिमान स्थापित हुआ था। 2014 के उस कीर्तिमान को 2019 में 3.77 लाख वोट से जीत कर ध्वस्त कर दिया गया।

Chatra Lok Sabha seat