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Sunday, May 5, 2024
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झारखंड का पहला नरसंहार था लातेहार का जालिम नरसंहार, दो पक्षों के बीच हुई थी खूनी झड़प

लातेहार : सदर थाना क्षेत्र के जालिम गांव में गत 23 मार्च 1988 को हुआ नरसंहार झारखंड का पहला नरसंहार था, जिसमें आठ लोगों की जान चली गयी थी।

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क्या था पूरा मामला

अधिवक्ता सुनील कुमार ने बताया कि सदर थाना क्षेत्र के जालिम गांव में गत 23 मार्च 1988 दिन सोमवार को दो पक्षों के बीच छोटी-मोटी बात को लेकर हुए झगड़ा नरसंहार का रूप ले लिया था। लातेहार थाना कांड संख्या 57/1988 कैलाश साव पिता रामचंद्र साव के फर्द बयान पर दर्ज की गयी थी। फर्द बयान में कैलाश साव ने बताया था कि जालिम ग्राम निवासी नन्हकू गिरी का पुत्र उदय गिरि एवं सत्येंद्र साहू के बीच झगड़ा झंझट हुई है और सत्येंद्र साहू एवं उसके रिश्तेदारों ने पलियार टोला में आग लगा दिया था। इसके बाद पलियार टोले के लोगों ने सकेंद्र साव को पकड़ लिया एवं आग लगाने का कारण पूछने लगा। तब तक सकेंद्र साव के पक्ष में अर्जुन साहू एवं विजूल साहू दोनों भाइयों ने अपना लाइसेंसी बंदूक लाकर उन्हें डराने का प्रयास करने लगे। इसी बीच सूर्यदेव सिंह अर्जुन साहू का बंदूक पकड़ लिया और बंदूक लूट कर लोगों को मारना पीटना शुरू किया। देखते देखते यह मामला दंगा का रूप ले लिया और दोनों ओर से पारंपरिक हथियारों से लैस होकर सैकड़ों लोग पहुंच गये। पलियार टोला रणभूमि में तब्दील हो गया। पलियार पक्ष से सत्यनारायण सिंह की हत्या हो गयी। जिसके विरोध में पलियार टोला के लोगों ने अर्जुन साव, बिजुल साव (दोनों भाई) नागेश्वर साव, भोला साव (दोनों भाई) संजय साव, शिव प्रसाद साव, मोहर साहू एवं उसका बेटा रामविलास साहू को आरोपियों ने पारंपरिक हथियारों से वार कर निर्मम हत्या कर दी। दोनों ओर से लातेहार थाना में मामला दर्ज किया गया एवं सेशन कोर्ट में सत्रवाद 171/89 एवं 172 /89 के तहत मामला विचारण किया गया। सत्रवाद 171/ 1989 में कुल 40 लोगों को हत्या का दोषी पाया गया एवं फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के तत्कालीन अपर सत्र न्यायाधीश राम बाबू गुप्ता की अदालत ने उन्हें उम्र कैद की सजा सुनायी।

जिन्हें कोर्ट ने सुनायी थी सजा

चंद्रिका सिंह, जगनारायण सिंह ,जयराम सिंह, अनंत सिंह, विजेंद्र सिंह, मुंद्रिका सिंह, गोरा सिंह, सूर्यदेव सिंह, माधव सिंह, कुंजलाल सिंह, दशरथ सिंह, ननकू सिंह, सुरेंद्र सिंह, अशोक सिंह, शिव शंकर महतो, नंद बिहारी गिरी, जय शरण सिंह, राज मोहन सिंह, चंद्रदेव सिंह, विनेश्वर सिंह, गरजू सिंह, रामप्रसाद सिंह, प्रताप सिंह, प्रेम सिंह, उमाकांत सिंह, श्रीनाथ सिंह, नगर दयाल सिंह, जग लाल सिंह, गंगाधर सिंह, राजेंद्र सिंह, रामवृक्ष सिंह, शिवकुमार सिंह, शिशुपाल सिंह, कुलेश्वर सिंह, रामसुंदर सिंह, श्रीकांत सिंह, भूखनाथ सिंह, शिवमंगल सिंह, अंबिका सिंह एवं भुनेश्वर सिंह को सजा सुनायी गयी।

36 आरोपियों को भेजा गया था जेल

सजा के एलान के वक्त श्रीकांत सिंह, चंद्रदेव सिंह, विजेंद्र कुमार सिंह, एवं अशोक सिंह ने अपने को नाबालिग बताते हुए याचिका दाखिल कर दी। सजा के बिंदु पर एलान के पूर्व अदालत ने नाबालिगों की ओर से दाखिल याचिका को किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष हस्तांतरित कर दिया। शेष 36 आरोपियों को मंडल कारा भेज दिया गया था। इसके बाद सत्र वाद 172/ 89 के आरोपियों को भी जेल भेज दिया गया। दोनों पक्षों को जेल में जाने के बाद झारखंड उच्च न्यायालय में एक संयुक्त सुलहनामा पेश किया गया। गत 16 सितंबर 2002 को सुलहनामा के आधार पर उच्च न्यायालय के आदेश पर दोनों पक्षों के आरोपियों को जेल से रिहा किया गया।

स्पीडी ट्रायल ने सुनाया फैसला

कोर्ट का 17 जून 2005 के आदेश का उल्लंघन करके यह चारों आरोपी कोर्ट में अनुपस्थित हो गये थे। जुवेनाइल कोर्ट में लगातार अनुपस्थित रहने के बाद उन्हें बार-बार सम्मन किया गया। बावजूद वे लोग उपस्थित नहीं हुए तो जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड द्वारा गत 17 जनवरी 2018 को इनके विरुद्ध गैर जमानतीय अधिपत्र जारी किया गया था। (नॉन बेलेबल वारंट जारी किया गया था) इसके बाद पुलिस की दबिश के कारण इन चारों आरोपियों ने गत 10 जून 2022 को जेजे बोर्ड के प्रधान दंडाधिकारी मिथिलेश कुमार की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया, जहां इनकी जमानत की याचिका खारिज कर दी गयी। तत्पश्चात इन चारों आरोपियों ने अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम की अदालत में क्रिमिनल अपील 29 /2022 दाखिल कराया, जहां 1 महीना 18 दिनों की जेल के बाद उनकी जमानत स्वीकार की गयी और जेजे बोर्ड में ट्रायल शुरू हुआ स्पीडी ट्रायल करके इस केस में आज फैसला दिया गया।

फैसला में इतना विलंब न्यायालय की वजह से नहीं बल्कि आरोपियों के न्यायालय में उपस्थित नहीं होने की वजह से हुई है।

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