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Tuesday, April 30, 2024
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कुर्मी को आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग से आदिवासी समाज में आक्रोश, आंदोलन की चेतावनी

रांची : कुर्मी जाति को जबरन आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग को लेकर शनिवार को संपूर्ण आदिवासी समाज ने प्रेस क्लब रांची में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर विरोध जताया। इस प्रेस वार्ता में शशि पन्ना, प्रेमचंद मुर्मू, कुंदरेसी मुंडा, अनिल पन्ना, अमरनाथ लकड़ा आदि शामिल थे।

शशि पन्ना ने कहा कि कुरमी/कुड़मी को आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग को लेकर आदिवासी समाज आक्रोशित है। कुरमी/कुड़मी की भाषा, संस्कृति, परंपरा, रीति रिवाज कुछ भीं आदिवासी से मेल नहीं खाता है। लोकुर कमिटी द्वारा जो 5 मापदंड तय किया गया है उसमे में कुरमी/कुड़मी किसी भी अहर्ता को पूरा नहीं करता है।

इनकी भाषा कुरमाली, बंगला और मगही का अपभ्रष है तथा ये इंडो आर्यन लैंग्वेज फैमिली से है। आदिवासी का भाषा ड्राविडियन और ऑस्ट्रो एशियाटिक लैंग्वेज फैमिली से है। क्षेत्र के साथ साथ इनका भाषा भी बदल जाता है। बिहार में मगही, झारखंड में खोरठा और कुरमाली, बंगाल में बगला, ओडिसा में उड़िया भाषा बोलते है।

कुरमी/कुड़मी समाज खुद को आदिवासी से दूर रखते है आदिवासी की पारंपरिक त्योहार, रीति रिवाज से दूर रहते है इनके द्वारा हाल में सरहुल पर्व की शोभा यात्रा में किसी भी तरह का कोई योगदान नहीं रहा तथा इनके द्वारा किसी भी तरह का कोई झांकी भी नहीं निकला गया था।

इसके साथ ही CNT act 1908 में कुरमी/कुड़मी के लिए विशेष प्रावधान नहीं है। बल्कि उरांव, मुंडा वो अन्य के लिए विशेष प्रावधान है जैसे मुंडारी खूंटकट्टी भूमि, डालिकटारी, बकस्त भूइंहारी पहनाई, बकास्त भूइंहरी महतोई व अन्य।

कुरमी/कुड़मी समाज द्वारा हाई कोर्ट में याचिका दायर की गयी जिसको हाई कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। इस पर शशि पन्ना ने कहा कि आदिवासी समाज द्वारा इस केस में इंटरवेन किया जायेगा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एक बयान तथा सुप्रीम कोर्ट के कांस्टीट्यूशनल बेंच का जजमेंट का हवाल देते हुए कहा कि हाई कोर्ट किसी भी आदिवासी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का निर्देश नहीं दे सकता है।

कुरमी/कुड़मी को आदिवासी में शामिल करने से आदिवासी की जनसंख्या 50% से अधिक बढ़ जायेगी इसके बाद यह छठवीं अनुसूची लागू हो जायेगी। कुछ कुरमी/कुड़मी नेता द्वारा यह कहा जाता है की कुड़मी को आदिवासी सूची में शामिल करने से यहां की जनसंख्या 50% से अधिक हो जायेगी और यहां छठी अनुसूचि लागू हो जायेगा इसका खंडन करते हुए शशि पन्ना ने कहा कि सिर्फ जनसंख्या ही छठी अनुसूची की एकमात्र मानदंड नहीं है।

उन्होंने छठी अनुसूचित क्षेत्र राज्य असम और त्रिपुरा का उदाहरण देते हुए कहा कि असम में सिर्फ 12.4% आदिवासी की जनसंख्या है तथा त्रिपुरा में 31.8% आदिवासी को जनसंख्या है फिर भी यह छठी अनुसूचित राज्य में नहीं है। अरुणाचल प्रदेश में आदिवासी की जनसंख्या 68.8% है तथा नागालैंड में आदिवासी की जनसंख्या 86.5% फिर भी यह राज्य छठी अनुसूची में शामिल नहीं है। इसलिए जनसंख्या एकमात्र मापदंड नहीं है किसी भी राज्य को छठी अनुसूचित राज्य में शामिल करने के लिए।

सामाजिक कार्यकर्ता कुंदरेसी मुंडा ने कहा कि कुरमी/कुड़मी मध्य भारत से माइग्रेट करके छोटा नागपुर में आए हैं उन्हें अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है, जैसे हमारे आदिवासी भाई असम में 200 साल पहले जाकर के बसे हैं फिर भी उन्हें वहां पर अनुसूचित जनजाति की सूची में नहीं रख रखा गया है क्योंकि वह वहां के मूलनिवासी नहीं है बल्कि झारखंड से विस्थापित होकर कर वहां पर बसे हैं। इसलिए हम कुरमी/कुड़मी को आदिवासी सूची में शामिल करने का विरोध करते हैं।

युवा सामाजिक कार्यकर्ता अनिल पन्ना ने कहा कि कुरमी/कुड़मी के कुछ नेता अपनी राजनीति फायदे के लिये आदिवासी बनना चाहते हैं। उनकी नजर संविधान प्रदत्त आदिवासियों के आरक्षण पर है, उनकी नौकरियों पर है।

पन्ना ने कहा कि वे बहुत सबल हैं, बुद्धिमान है, उनका समाज जागरूक है। ऐसे में वे आदिवासी बन जाते हैं तो भविष्य में विधानसभा और लोकसभा के आरक्षित सीटों पर कब्जा जमा सकते हैं। आदिवासियों की ज़मीन पर खरीद बिक्री कर सकते हैं। कुड़मी समाज अपने को शिवाजी का वंशज मानते हैं, वे अपना तार राजा भोज से भी जोड़ते हैं। इसके अलावे अपने को पटेल समाज के कहते हैं। साथ ही वे अपने को क्षत्रिय मानते हैं। एक तरह से देखा जाये तो कुड़मी समाज का रीति रिवाज, परंपरा, भाषा संस्कृति, गोत्र व्यवस्था पूरी तरह से आदिवासियों से मेल नहीं खाता है। आदिवासी समाज प्रकृति पूजक है, आदि धर्म सरना धर्म को मानते हैं, वहीं दूसरी ओर कुड़मी/कुरमी समाज हिन्दू धर्म के विधि विधान के साथ चलते हैं।

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता प्रेमचंद मुर्मू ने कहा कि कुरमी/कुड़मी आर्यन प्रजाति के है बल्कि आदिवासी लोग ड्राविडियन और प्रोटो एस्ट्रो लॉयड प्रजाति के होते है।

भविष्य में अगर दुबारा इस तरह की मांग की गयी तो आदिवासी समाज द्वारा सड़क से सदन तक जोरदार आंदोलन किया जायेगा।

Jharkhand Kurmi vs tribal